सोमवार, 31 दिसंबर 2012

बस इन्सान बनो --

बीते साल और  नए साल  के बीच  जीवित होती इंसानी भावनाओ  और  मरती इंसानियत के  तार जोडती  पोस्ट ----  बस इन्सान बनो --- दिल्ली बलात्कार मामले के बाद जो प्रतिक्रिया देश  में देखने मिल रही है  उसमे जो बहुत अच्छा  लगता है वो है स्वस्फूर्त जनआक्रोश ,,जो इन्सानियत को न्याय दिलाने के लिए दिख रहा है .... देश भर में  भीड़  उमड़ी  वी वांट  जस्टिस  के नारों के साथ .... आमतौर पर इतनी भीड़ किसी जातिवर्ग के सांप्रदायिक  उत्सव  के दौरान  ही आम लोगो की दिखती है ...या फिर किसी जातीय ,धार्मिक , विशेष संप्रदाय ,राजनैतिक ,  सरकारी और गैर  संगठन के आयोजन में ... आत्मा की आवाज़ सुनकर तो मानो कोई कुछ करता ही नहीं ..क्योंकि दिल और दिमाग तो सदियों पुराने  चले आ रहे सामाजिक रीती रिवाजों से बंधे है ...जैसे ईश्वर ने उन्हें पृथक दिल दिमाग देकर कोई बड़ी भूल कर दी हो ....क्योंकि उन्हें अपने विवेक और दिल की बातो को स्वीकार करके  उन्हें अपनाने का या तो साहस नहीं या वो उसी ढर्रे पर जिना  चाहते है ...अपने विचारो का सम्मान करना इंसान को सीखना चाहिए ......बहरहाल दिल्ली और देश में दिख रहा जनाक्रोश  किसी भेदभाव अपने पराये की भावना से अलग है ..ये इंसान के लिए इंसानी जज्बातों को सम्मान देते नज़र आता है .... यहाँ केवल महिलाये ही महिलाओ के लिए खड़ी  नज़र नहीं आती ..बल्कि स्वस्थ् चित्त वाले पुरुष भी साथ खड़े दिखते  है ...क्योंकि इंसानियत  स्त्री पुरुष ,जाति , समाज , क्षेत्र ,भाषा  का भेद नहीं करती ...
जन आक्रोश के बाद बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने और कार्रवाई की मांग करने वाले सांसदों में से एक महिला सांसद ने कहा कि ऐसे मामलो में सुनवाई के लिए महिला वकील और महिला जज को ही अधिकार देना चाहिए ...ताकि महिला महिला के दर्द को समझ सही न्याय कर  सके ..... दरअसल यही चूक  हो रही है ...हमने  अपनी हर  व्यवस्था में महिलाओ को पुरुषो से अलग रखा है ...कभी प्रतियोगिता में  आरक्षण के नाम पर, कतारों में महिला विशेष छुट के नाम पर ... बस रेलवे में सीटो में नाम पर .   पढ़ाई के लिए भी स्कूल कालेजो में रिजर्वेशन चलता है ...... इस व्यवस्था ने महिलाओं  को  पुरुषो की तुलना में कमज़ोर करार देकर उन्हें  ही एक दुसरे से पृथक कर दिया ..... ( अगर शारीरिक असमानता के आधार पर उनको उनके अधिकार देने है तो महिलाओ के  लिए प्रतियोगिता  भी उनके बीच ही होनी चाहिए  - ताकि दोनों के बीच भेद की स्थिति न उपजे - अलग व्यवस्था सृजित की जाये ताकि  वो  वहा वो स्वतंत्र वातावरण में अपने कामकाज कर सके   )
 महिलाओ के उपर हो रही ज्यादती को लेकर भी मैंने अपने आस पास में ही कथित बुद्धिजीवियों से  सुना -- कि ऐसी घटनाओ के लिए आधुनिक पीढ़ी की लडकियों के पहनावे  ..उनकी लाईफ स्टाइल जिम्मेदार है ......मै ये सब नहीं मानता .... क्यों लोग सब कुछ उन्ही पर थोप देते है ... भाइयो जहा तक सेक्स की उत्कंठा का सवाल है ... मेरे ख्याल से इश्वर ने स्त्री पुरुष दोनों में  ही सामान रूप से इसके प्रति आकर्षण रखा है ...जबकि उल्लेख तो यह भी होता है कि  पुरुषो की तुलना में स्त्रियों में ज्यादा उत्तेजना होती है ..... ...अब यहाँ ये बात समझना चाहिए जब  कम कपड़ो में दुनिया भर में घूम रहे पुरुषो को देखकर भी स्त्रियाँ अपने आपे से बाहर नहीं होती तो फिर  पुरुष वर्ग ही ऐसा क्यों करता है ?.... दरअसल इसके लिए भी सामाजिक भेदभाव ही जिम्मेदार है ... पुरुषो को आज़ाद माना गया है ...वो करे भी तो सब माफ़  है  मगर स्त्रियों को एक गलती भी माफ़ नहीं ...यही वजह है कि सदियों से स्त्रियाँ खुद को नियंत्रित करती आ रही है ....यही तो आज देश चाहता है कि ज़बरदस्ती करने वालो के मन में इतना  भय कड़ी प्रतिबद्धता से भरा जाये कि वो खुद को खुल्ला सांड न समझे ....
संस्कृति का नाम लेकर आज भी विवाह के बाद महिलाओ के लिए ड्रेस कोड के तौर  पर परिधान फिक्स कर  दिया जाता है ...जबकि पुरुष वही लिबास पहनना जारी रखते  है ....  यानि यहाँ भी आजादी किसी एक को दी गई ...... सृष्टि का सिद्धांत है जो ज्यादा शक्तिशाली है जिसे ज्यादा आजादी है वो कमज़ोर पर हमेशा हावी होगा ही ..........  ..........  

....विचारो में आवश्यक खुलापन लाना ज़रूरी है ....इसपर राजनीती नहीं होना चाहिए ...... नेताओ और राजनीती को लोग बुरा कहते  है .... पर इस बात को नहीं समझते राजनीती का जो स्वरुप उन्हें पसंद नहीं उसे उन्होंने ही  बलशाली बनाया है ... जाति ,समाज ,  धर्म ,  भाषा , क्षेत्र   इस सभी के ताने बाने में  लोग इतना उलझे है कि  उन्हें  खुद इंसान कम और  अलग अलग नस्ल के ज्यादा नज़र आते है ... जो उनके बीच का है बस वही उनका चहेता है .. फिर क्यों नहीं होगी इस पर राजनीती ?? ... एक हो जाओ  फिर न राज ठाकरे होगा ...ना मायावती ना ..भाजपा ना कांग्रेस .न फलाना फलाना धार्मिक संस्थाये जो राजनेताओ को पोषित करती है ...... पुरे देश में सब इंसान बनो ...फिर न्याय - व्यवस्था - राजनीती - प्रशासन सब इसी के आधार पर अपनी दिशा में बढ़ेंगे .... यहाँ तो हिन्दू और मुसलमान के लिए भी अलग अलग कानून बना दिए गए है ...जातियों में भेद करके  उन्हें व्यवस्था भी   एक दुसरे से अलग कर रही है .... यानि  बात केवल इतनी है ...जहा  केवल एक सामान अधिकार और हैसियत के लोग होंगे वहा  दानव  भी छुप नहीं सकेंगे  वो साफ़ साफ़  नज़र आ जायेंगे ...असमानता को  भेदभाव   या अधिकार कम करके  नहीं मिटाया जा सकता .... समानता केवल समानता को ताकतवार बनाने से आती है ....

--महिलाओ सहित सभी अलग अलग हो चुके समुदायों  को एक सी आजादी देनी होगी --- राजनीती पर अफ़सोस जताने वालो को इसकी मौजूदा स्थिति के कारणों को समझना होगा ....कमज़ोर लोगो को आरक्षण देकर अलग अलग इंसानी समाज न बनाकर  उन्हें उस आर्थिक मदद देकर सरकार और व्यवस्था को मजबूत बना कर एक सामान प्रतियोगिता में खड़ा करना होगा  -- महिलाओ को नैतिकता और संस्कृति की बेडियो से आज़ाद करना होगा ..अगर नहीं कर सकते तो यहाँ भी समानता का सिद्धांत लागू करना पड़ेगा यानि पुरुषो की भी उतनी ही आजादी कम हो ...... हर इंसान चाहे वो स्त्री हो या पुरुष  उसे पहले इंसान समझा जाए ---

ये वो कुछ बिंदु है जो  देश में बढ़ रहे अपराधो ..मरती इंसानियत ,  भ्रष्ट राजनीती की वजह है ... अनेक संस्कृति फिर भी एक ..इन क्रिटीबल इण्डिया --- ये सब बाते फालतू कि  हो चुकी है -- फूट डालो राज़ करो कि नीति को मजबूत करने के लिए हमारे देश में बहुत कुछ है ...तभी यहाँ कभी कोई समुदाय शीर्ष पर होता है ..स्त्री की हालत दयनीय है .... स्वार्थ  से भरी इंसानी महत्वकांक्षाए अलग अलग विचारधारा को ताकातवर बना देती है ...और फिर बाहर  दूसरे देश से आये लोग हम पर प्रभाव जमा लेते है ... क्योंकि वो नैतिक तौर पर  हमसे ज्यादा आज़ाद है   ......

अंत में यही बात कहना  है कि  अगर कही सकारात्मक ..इंसानियत से ओत प्रोत   उर्जा  के कोपल फूट  रहे है तो ये इस बात के संकेत है कि  अब सृष्टि भी उसी स्वरुप में अपनी रचना को देखना चाहती है ..जैसा  उसने उसे बनाया था .... यानि केवल इंसान ..इंसान के रूप में  आज़ाद हवा में समानता से साँस ले .... दिल्ली के दरिंदो को तो मौत के हवाले  करना ही चाहिए ..ऐसा करके इंसानी समाज में रहने वाले दानवो उनकी सीमा दिखानी चाहिए ....वो लड़की तो चली गई मगर देश में  इंसानों  को जगा गई ... उसे श्रद्धांजलि ...   उम्मीद करते है उसकी मौत व्यर्थ नहीं जाएगी .... कुछ तो बदलाव आएगा ....नए साल में सबको इंसानियत और खुशिया नसीब हो -- बस इंसान बनो ..भगवान् हम  सभी को आत्मिक शांति से परिपूर्ण  आशीर्वाद दे   welcome 2013 -          Dhirendra 

बुधवार, 21 नवंबर 2012

न्याय शांति देता है जबकि बदला पूरा होना क्रूर हंसी ..डिस्को



  1. सुप्रभात मित्रो .... आज सुबह उठते ही कसाब को दी गई फंसी पर एक अखबार के मुख्य पृष्ठ ही हैडलाइन पढ़ी - देश की इच्छा पूरी - ये सही है --- मगर जब घर से ऑफिस के लिए निकला तो एक ऍफ़ एम पर रेडिओ जाकी को बोलते सुना आज हर देशवासी का दिल डिस
    ्को कर रहा है कसाब को फांसी जो दे दी गई है .... पता नहीं क्या सोच कर ऍफ़ एम के संपादक ने आर जे की स्क्रिप ओके की होगी .... भाई हम भारतीय लोग किसी दुश्मन की मौत पर भी जश्न नहीं मानते ..ना ही डिस्को करते है ..... भले ही हम चाहते थे कि देश के दुश्मन को सजा मिले ताकि दुश्मनों को ये पता चले कि भारत नरम ही नहीं सख्ती भी दिखता है ..... ये फासी केवल उन लोगो को एक न्याय है जिन्होंने अपनी जान मुंबई हमले में गंवाई ....फंसी का स्वागत है शांति के साथ ...पर मौत पर डिस्को ..मिठाई खाना ...और फटाखे फोड़ना ...ये ठीक नहीं लगता ...फांसी ने न्याय दिया है तो स्वागत योग्य है ..यही होना चाहिए देश के दुश्मनों के साथ .. सख्ती जरुरी और बेरहमी यहाँ मज़बूरी थी क्योंकि सामने दुश्मन था ...मगर मौत पर नाचना ये क्रूरता और असभ्यता है ..... कल दिन भर फेसबुक पर लोगो के कसाब की मौत को लेकर पोस्ट अपडेट होते रहे ... दुश्मन को सजा शांति दे रही थी ...मगर आज एक दिन बाद इस फांसी पर विलंबित पोस्ट डाल रहा हूँ जब जरुरी लगा .... ( मेरी व्यक्तिगत बात है किसी को बुरी लगे तो माफ़ करना ..मुझे लगता है न्याय बदले की .. न्याय शांतिप्रिय लोगो की पसंद है जबकि बदला हिंसक और क्रूर .. जो कसाब के दिमाग में भरा गया था .. ..और न्याय शांति देता है जबकि बदला पूरा होना क्रूर हंसी ..डिस्को ) ..... जय हिन्द

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

अगर खुद के लिए ना जीना चाहो... तो किसी और के लिए जियो..........



क्या कहू तुझसे ..तू जो चाहे वही माने ...क्यों दूर रहे तू उससे जिसे तू अपना भगवान माने.... ज़िन्दगी उसने दी कुछ कर कर गुजरने के लिए ...तो उसे तू गवाना चाहे ..
...है हर शख्स को मुस्कान की चाहत ..फिर क्यों तू उनके ख्यालो को ना जीना चाहे ...तू माने वही ... जो तू करना चाहे फिर भी ये सवाल उभरता क्यों है .... अब तो वो इश्वर भी पत्थर हो गया है तो फिर तेरा दिल मोम सा पिघलता क्यों है ...


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 दुनिया में प्यार और सहारे की ना जाने कितनो को ज़रूरत है ...बेहतर होगा कि अपना सारा प्यार एक पर न्योछवर करने की जगह थोडा थोडा उन में बाँट दो जिन्हें स्नेह की जरुरत है ..... उनमे बर्बाद ना करो उनके लिए जिनके पास वो पहुच नहीं पा रहा ... या जिन्हें उसकी जरुरत नहीं ........ अगर उपर वाले ने प्यार का मतलब ..उसका एहसास करा दिया है तो उससे सीख लेकर ..उसको यू बिखेरो जैसे मोती ... अगर सभी अपने स्नेह के भाव को व्यर्थ ना गँवा कर उसे मायूसी की कगार में पड़ी जिंदगियो में बाटेंगे तो ये छोटे छोटे प्रयास किसी के लिए संजीवनी बन जायेंगे .....जियो और जीने दो ... और अगर खुद के लिए ना जीना चाहो... तो किसी और के लिए जियो..........


Dhirendra Giri Goswami 

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन आन्दोलन के समर्थन में आगे आये ..जय हिंद



"बूढ़े भारत में छाई फिर से नई जवानी है खूब लड़ रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना भी जनता ने भी साथ देने की ठानी है" 72 वर्ष के बुजुर्ग किशन बाबू राव हजारे जिन्हें सारा देश आज अन्ना हजारे के नाम से जानता है ..देश के रियल हीरो बन गए है ..अन्ना 5 अप्रैल 2011 को दिल्ली के जंतर मंतर में आमरण अनशन पर बैठ गए मेरे द्वारा ये विचार भाव को लिखते तक अनशन के करीब 62 घंटे पूरे हो चुके है..बड़ा अच्छा लग रहा है की जनता की आवाज़ बुलंद कर रहे अन्ना को देश भर की आम जनता समर्थन दे रही है अपने रोज़ के कम काज में ही व्यस्त , थोडा समय मिला तो टीवी पर सास बहू के सीरियल देखने में मस्त हो जाने वाली जनता .इस जन आन्दोलन में शरीक हो रही है ..कोई सडक किनारे सामाजिक कार्यकर्ताओ के साथ अनशन पर है तो इंटरनेट और मोबाइल फोन्स के ज़रिये समर्थन के एसएमएस कर रहा है और कुछ नहीं तो टीवी के डेली सोप का त्याग करके महिलाये भी न्यूज़ चैनल में देश भर में हो रहे इस महाआन्दोलन के उफान को महसूस कर रही है ...ये सारे घटनाक्रम सकारात्मक संकेत है देश के लिए ..कभी राजनेताओ को ,तो कभी सिस्टम को ,तो कभी अपनी खुद की कमजोरियों आरोपित और स्वीकार करने वाली जनता निराशा और
नीरसता 
 
के
 जंजाल से मुक्त होकर अपनी ताकत का भान कर रही है...अन्ना के समर्थन में पूरा देश है इसमें आम जनता की सहभागिता सबसे ज्यादा है क्योंकि अन्ना नहीं चाहते की उनके सत्याग्रह में राजनैतिक दिखावे की छीटे पड़े ..बिना किसी चाटुकारिता के ,बिना किसी बहकावे के देश भर में किसी उद्देश्य को लेकर इतना बड़ा जनसमर्थन प्राप्त होना ये दर्शाता है कि भारत स्वाभिमान
जाग रहा है
 ..परसों ही समाज
के
 जाने माने बुजुर्ग और प्रसिद्ध गाँधीवादी नेता केयूर भूषण जी से मुलाकात
की
 जो इण्डिया अगेंस्ट करप्शन और भारत स्वाभिमान मंच द्वारा अन्ना के समर्थन में हो रहे आमरण अनशन के रायपुर के आजाद चौंक में मौजूद गाँधी जी की प्रतिमा के नीचे अनशन में सम्मिलित हुए थे ..उनसे मैंने पूछा क्या भारत स्वाभिमान जागेगा तो उन्होंने कहा की ज़रूर जागेगा क्योंकि देश की जनता चाहती है उन्हें ईमानदार सरकार मिले और उनकी ये ही इच्छा भारत स्वाभिमान जगाएगी और बाबा रामदेव और अन्ना हजारे की मुहीम ज़रूर रंग लाएगी ...कहने का मतलब ये है की आज़ादी के बाद अंगड़ाई लेते देश को मिले यौवनकाल के जोश से लेकर भ्रष्टाचार के दलदल में फस चुके भारत की वर्त्तमान स्थिति को महसूस कर चुके बुजुर्ग जब आज भी उर्जावान और आशावान है तो हम क्यों
 कुछ 
 बदलने का ज़ज्बे से पीछे है ..गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अन्ना को भ्रष्टाचार के विरोध का प्रतिक बता दिया ,उन्हें इंदिरा गाँधी के शासनकाल में लगी इमरजेंसी के वक़्त तत्कालीन हालत में देश के हीरो कहलाये जेपी की तरह बताया ...अरे मोदी साहब यहाँ भी कोंग्रेस विरोधी बातो को दोहराने का मौका नहीं छोड़ रहे ..अन्ना को हीरो बताया ये सही है मगर आपातकाल वाली बात कहना गले से नहीं उतरती ..आज देश की जनता जागरूक है ...लोग अपनी बात सरकार <䁳pan class="tran聳l_class" id="509" title="Click to correct">तक पहुचना जानते है और ये जनांदोलन इस बात का प्रमाण है ...बड़े दुःख की बात है की राजनेता अब भी आरोप प्रत्यारोप की राजनीती में लगे है..यू पी सरकार पूरी तरह फ्लॉप साबित हो रही है और जनता को किसी और राजनैतिक दल या गठबंधन पर भरोसा नहीं रहा ..उन्हें ये भी लगता है कि सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे है.. अब वोट देकर किसी को तो लाना ही है तो क्यों उस चुने हुए नेता के लिए ऐसा मार्ग तय कर दिया जाये जिसमे चल कर उसे केवल जनहित में कार्य करना हो ..केवल स्वयंहित में नहीं..ऐसा मार्ग तैयार कर दिया जाये जिसमे भ्रष्टाचार निरोधी ब्रेकर्स हो ...ताकि वह सौम्यता के साथ राष्ट्रहित में कार्य कर सके ...और ये सब संभव है जन लोकपाल बिल के लागू किये जाने से ..सिस्टम बनाने वालो से लेकर सिस्टम चलने वालो तक के दुराचरण पर शिकंजा होगा पर दुर्भाग्य है कि वर्त्तमान युग का कोई भी राजनेता ऐसा दिल से नहीं चाहेगा ...फिलहाल जनआन्दोलन की उर्जा को देखकर सरकार अन्ना के अनशन के सामने झुकती नज़र रही है जो उत्साहवर्धक खबर है मगर इतना तो साफ़ है कि अगर ये बिल पास हो जाता है देश में नक्सलवाद जैसी समस्या भी जल्द ही दम तोड़ देगी .अंत में यही कहना चाहता हूँ की अगर आप अपनी दिनचर्या के महत्वपूर्ण कार्यो के विपरीत जाकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अनशन नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं कम से कम देश हित से जुड़े हर विचार का प्रचार तो कर ही सकते है भ्रष्टाचार के विरोध में नीरस पड़े जन समूह में भाव तो जगा सकते है ..ये छोटा सा प्रयास असर दिखायेगा ...अपने काम करते रहिये मगर जो बन पड़े कीजिये ..फेसबुक पर विचार रखिये ,ब्लॉग लिखिए ,ट्विट कीजिये एसएमएस कीजिये जो बन पड़े कीजिये ...आपका अभिनव प्रयास ज़रूर असर दिखायेगा और अन्ना का अनशन इसका प्रमाण है जय हिंद जय हिंदुस्तान ..देश के हीरो अन्ना को सलाम भ्रष्टाचार के जन आन्दोलन के समर्थन में (धीरेन्द्र गिरि गोस्वामी )जय हिंद

रविवार, 3 अप्रैल 2011

चिंतलनार ने बढाई रमन सिंह की चिंता

छत्तीसगढ़ की खुद की पहचान देश में उतनी नहीं बन पाई जितनी की दंतेवाडा कीदेश और दुनिया में है ॥आये दिनों यहाँ देशी और विदेशी मानवाधिकारसंगठनों और उनसे जुड़े कार्यकर्ताओ का जमावड़ा लगा रहता है रायपुर की एकनिचली अदालत द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता डॉ। बिनायक सेन को उम्रकैद कीसजा की सुनाये जाने के बाद दंतेवाडा में अन्तराष्ट्रीय मानवाधिकारसंगठनो सहित विदेशी मीडिया वालो ने चहलकदमी तेज़ कर दी थी फिर भला देशीक्यों चूक करते ॥ दंतेवाडा से नक्सलियों द्वारा पांच जवानों को अगवाकिये जाने के बाद स्वामी अग्निवेश छत्तीसगढ़ आये और जवानों की रिहाई केलिए सरकार की और से मध्यस्थता की और राज्य सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखाकी वो नक्सलियों और सरकार के बीच शांति वार्ता के लिए कोशिश करना चाहतेहै उनके इस प्रस्ताव पर राज्य सरकार ने सकारात्मक रुख अख्तियार करने काभरोसा भी दिलाया ..इस पूरे घटना क्रम के बाद एक बार ऐसा लगा मानो स्वामीअग्निवेश का अगला छत्तीसगढ़ प्रवास शांति की उम्मीदे लायेगा ..मगर घटा कुछअलग जिसे केवल एक घटना के तौर नहीं बल्कि दुर्घटना पहचाना गया ..इस बारस्वामी जी 14 मार्च को दंतेवाडा के चिंतलनार में आदिवासियों के साथ हुएहादसे पर मरहम लगाने आये थे दरअसल सुरक्षा बलों पर आरोप है कि 14 मार्चको जब माओवादियों से मुठभेड़ के बाद सुरक्षाबल के जवान चिंतलनार से वापसलौट रहे थे।तब लौटने के क्रम में उन्होंने कथित रूप से चिंतलनार केइलाक़े में कुछ गांवों में जमकर उत्पात मचाया और आदिवासियों के 300 घरोंको जलाया, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया और कुछ ग्रामीणों की हत्या भीकर दी थी.हालांकि पुलिस ने इस घटना से इनकार करते हुए कहा कि ये सिर्फमाओवादियों का एक प्रचार है किन्तु जो भी इस घटना ने राज्य सरकार को एकबार फिर कटघरे पर खड़ा कर दिया और इसमें स्वामी अग्निवेश का बड़ा हाथ है..मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को शांति का पाठ पढ़ाकर गए अग्निवेश जबआदिवासियों के साथ हुए हादसे की पीडितो के लिए राहत सामग्री लेकरचिंतलनार जा रहे थे तब वहा पहुचने के पूर्व रास्ते में उनके काफ़िलेपर कुछ लोगो ने पथराव किया और उन पर अंडे फेंके और उन्हें वापस लौटनापड़ा स्वामी अग्निवेश ने मामले में सीधे सीधे तौर पर छत्तीसगढ़ सरकार कोज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि हमला राज्य सरकार के इशारे पर हुआ था..अग्निवेश के बयान ने चिंतलनार में हुए अग्निकांड की आग को विधानसभा तकपहुंचा दिया और इस मुद्दे को लेकर विपक्ष ने खूब हंगामा किया ..इन सबकेबीच चिंतलनार का हाल जानने वहां जा रहे कांग्रेसी विधायको के दल को भीपुलिस ने रास्ते में रोका था इस पूरे मामले पर छत्तीसगढ़ विधानसभा मेंविपक्ष के नेता रविन्द्र चौबे ने रमन सरकार पर आरोप भी लगाया कि हमलाकरने वालों को सरकार पनाह दे रही है...अब कौन सही है और कौन गलत इसकाखुलासा आने वाले दिनों में साफ़ हो जायेगा जब मीडिया इस घटना की सच्चाई कीपरत कुरेदने लगेगी मगर प्रथम दृष्टया इस मामले में राज्य सरकार और पुलिसकी भूमिका संदिग्ध नज़र आ रही है बहरहाल मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह नेमामले को बढ़ता देख कर तपाक से स्वामी अग्निवेश को लपेटे में लेते हुए येसवाल उठा दिया कि मानवाधिकार संगठन वाले केवल नक्सलियों के हितेषी बनकरकि क्यों बार छत्तीसगढ़ चले आते है तब क्यों नहीं आते जब पुलिस औरसुरक्षाबलों के जवानों को नक्सलियों का शिकार होना पड़ता है जो भी हो एकबात तो साफ़ है कि दंतेवाडा में शांति की गुहार लगा रहे आदिवासियों को नातो राज्य सरकार का सहारा है ना स्वामी अग्निवेश सरीखे मानवाधिकारकार्यकर्ताओ का और ना ही माओवादियो का ..छत्तीसगढ़ का ये इलाका फिलहालकेवल हिंसा .राजनीती और लाल गलियारे सहित बिनायक सेन की कर्मभूमि के नामसे जाना जायेगा ..आदिवासी उनके हितो वहां के विकास कार्यो और संस्कृति केलिए नहीं

आप सभी को एक बार फिर क्रिकेट विश्व कप 2011 में भारत की विजय पर दिल से शुभकामनाये...जय हिंद जय हिंदुस्तान


२ अप्रैल 2011 वो दिन जिसने एक फिर साबित कर दिया की चाहे लाख सामजिक बुराइयां हो हम हिन्दुस्तानियों में मगर जब देश की बात आती है तो सारे मजहब एक हो जाते है फिर चाहे वो मौका किसी भी संवेदनशीलता को बयां क्यों न करता हो ..संवेदनाये हम लोगो में कूट कूट कर भरी है और हम अपने ज़ज्बातो को ज़ाहिर करना भी बखूबी जानते है ...भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्व कप पर कब्ज़ा जमा कर पुरे देश को विजयदशमी ,दीपावली , ईद ,क्रिसमस और प्रकाश पर्व को साथ मानने का मौका दिया ...सन 1983 में भारत ने जब विश्व कप जीता तब तो मेरा जन्म भी नहीं हुआ था मगर इतना यकीन से कह सकता हूँ संचार के माध्यम कम होने की वजह से उस वक़्त जीत का जश्न इस बार की तुलना में कम ज़रूर रहा होगा मगर जश्न तो तब भी मना होगा ..कुछ लोग कहते है क्रिकेट ने हमको क्या दिया वर्ल्ड कप जीता तो खिलाडियों को पैसा मिलेगा हमें क्या मिलेगा ..क्यों क्रिकेट को देखकर समय बरबाद करे..ऐसे लोगो से मै ये कहना चाहता हूँ अगर हर चीज़ को कुछ पाने की चाहत में ही करना चाहते हो तो मंदिर मजारो में चढ़ावा देना बंद कर दो ..जो भी जायेगा पुजारी या खादीम को मिलेगा आपको क्या मिलेगा ..ये सुझाव और उसका तर्क ऐसे ही लोगो की प्रवृत्ति से जुड़ा हुआ है मेरी नहीं ..मै तो केवल इतना जानता हूँ शहर की सडको में रोज़ ट्रेफिक में फसने के बाद ज़रा सी ठोकर लग जाने पर एक दूसरे को गली देने वाले ..बात बात पर जाति और धर्मं की आड़ लेकर अपनी खीज निकलने वाले अगर विश्व क्रिकेट के शीर्ष में में भारतीय पताके को लहराता देख कर देर रात सडको पर उतर आते है, रात भर जश्न मानते है, अनजान अपरिचित लोग किसी घनिष्ट की तरह गले लग कर जीत की एक दुसरे को मुबारकबाद देते है तो सौहार्द्य का ये पर्व गर्व करने योग्य है क्रिकेट महज एक खेल है मगर इसने जो कर दिखया वो बड़े बड़े बड़बोलो ने नहीं किया ...मुझे भी इस जीत से कुछ आमदनी नहीं हुई मगर जो ख़ुशी अपने लोगो के खिलखिलाते चेहरे देख कर मिली ...लोगो में खुशिया देख कर मिली उसको बयां नहीं कर सकता ..अगर कहते है क्रिकेट एक धर्मं है तो ये सच है ये एक ऐसा धर्मं है जिसे न आज के समय में पुरे साल अपने अस्तित्व को जताने के लिए अपने अनुयाइयो के ज़रिये प्रचार की ज़रुरत है न किसी धार्मिक चंदे की ,ना राजनैतिक दलो के सानिध्य की , ना किसी सामाजिक नियम कायदे की ...ये बस इंसानी भावनाओ को संजोना जानता है हार में मायूसी और जीत में जश्न की छवि उकेरना जानता है ..जिस्मानी और मानसिक तौर पर टूटे लोगो को कुछ समय के लिए सही एक दुसरे में समेटना जानता है ...इन सब से इतर ये बात अलग है हर किसी की अपनी स्वतंत्रता है किसी को किसी चीज़ में ख़ुशी मिलती है किसी को किसी ज़िन्दगी जीने का अपना अपना तरीका है जो करना है कहना है कहिये और करिए मगर सकारात्मकता को जीने का प्रयास कीजिये ...कल रात को धोनी के छक्के के साथ ही पूरा देश खुशियों के मरे उछल पड़ा उन सभी की खुशियों का सम्मान करता हूँ क्रिकेट को और टीम इंडिया को सलाम करता हूँ जिन्होंने ये ऐतिहासिक पल का साक्षी हमें बनाया ...मुझे रायपुर के जय स्तम्भ चौंक में हजारो की भीड़ के साथ उनकी / हम सबकी ख़ुशी में शरीक होना बहुत सुखदाई लगा ...आप सभी को एक बार फिर क्रिकेट विश्व कप 2011 में भारत की विजय पर दिल से शुभकामनाये...जय हिंद जय हिंदुस्तान ...

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

tiranga कितना फर्क है दोनों पीढियों में मगर ज़ज्बा वही


ये मेरी दादी है "शांतिदेवी " ..नब्बे साल की है आज जब हम गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए घर की छत पर जा रहे थे तब पापा ने कहा बेटा इस बार मै ध्वजारोहण नहीं करूँगा ..अपनी दादी से कहो उन्हें ख़ुशी मिलेगी ..पहले मैंने सोचा कि नब्बे साल कि दादी घर कि छत पर चढ़ पायेगी या नहीं ..मगर उन्होंने एक बार में ख़ुशी से हाँ बोल कर छत में चढ़ने की तैय्यारी शुरू कर दी...तिरंगा फहराने के बाद कहती है की बेटा देश की आज़ादी में लड़ने वाले देवदूत थे उनको याद करना चाहिए ...देखिये एक है मेरी दादी जो नब्बे साल की है और दूसरा है मेरा 8 साल का भतीजा आदित्य (साथ खड़ा बच्चा )कितना फर्क है दोनों पीढियों में मगर ज़ज्बा वही ...जय हिंद जय हिंदुस्तान