रविवार, 10 जनवरी 2010

ज़रा सोचे आप विज्ञापन पढने के आदी तो नहीं ?




पत्रकारिता में मेरा अनुभव केवल नाममात्र का ही है मेरा मीडिया जगत में अभी प्रवेश ही हुआ है पर पत्रकारिता अपनी वास्तविक भूमिका से भटकती हुई प्रतीत हो रही है

मुझे ऐसा लगता है की यंहा कुछ लोग आपनी आडम्बर वादिता के कारन तो कुछ लोग झूठी सोच के कारन अपनी छवि के साथ साथ अन्य लोगो का भी नुकसान कर रहे है..हमने सुना था की अगर आप सच्चे मन से मेहनत करते है तो आपकी मेहनत बेकार नहीं जाती और वो कही न कंही झलक ही जाती है और अपने ताप से मुश्किलों का नाश करके मीठा फल प्रदान करती है पर आज की अंधी व्यवसायिकता की होड़ में इन्सान बेहद स्वार्थी हो गया है और उसका ज़मीर मर चुका है और इस भयानक सच का असर पत्रकारिता जगत में भी हुआ है ..आज सुबह अखबार पढने वाली या टीवी में समाचार देखने वाली जनता को कंही न कंही इस बात का एहसास ज़रूर होगा की वो जो खबर पढ़ रहे है या देख सुन रहे है उनमे सच्चाई है भी या नहीं इस बात की कोई गारंटी नहीं है अधिकांश मीडिया संस्थान केवल विज्ञापन पाने और उसकी सहायता से धन उगाहने के लिए ही अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है कोई भी खबर के साथ न्याय नहीं करना चाहता .ऐसी स्थिति में अगर सच्ची पत्रकारिता करना भी चाहे तो उसको पत्रकार की शक्ल लिए ,चाटुकारिता करने वाले दलाल कमज़ोर कर देते है

लेकिन कही न कही सच्चे पत्रकार अभी भी है जो अपने ज़मीर के साथ समझोता नहीं करते पर सोचिये ऐसे लोगो को जानता कौन है उनके कलम की ताकत जनता तक पहुचती कब है पर वो कर्मठ अ़ब भी प्रयासरत है और एक मुकाम बनाने के लिए संकल्प के साथ अडिग है ..अनजान सा अखबार जिसको आपने कभी नहीं पढ़ा न उसका कभी नाम सुना है वो आपके सामने न जाने कितने सच उजागर कर सकता है

पर हमारी विडम्बना है की हम तो केवल बड़े नाम वाले उन समाचार स्त्रोतों को देखने , सुनने या पढने के आदी है जो केवल विज्ञापनों के मिलने या न मिलने से अपनी खबर का मार्ग तय करते है और फिर उसूलो वाला पत्रकार यही ठगा जाता है ...ज़रा सोचिये आप किसी विशेष समाचार स्त्रोतों के आदी तो नहीं बनते जा रहे है आप विज्ञापन पढने के आदी तो नहीं बनते जा रहे है पहले परखिये ढूंढिए आपके ही हाँथ में वो कोई न कोई सच्चा खबर देने वाला स्त्रोत होगा जो खबर को भी न्याय देगा और उस कर्मठ पत्रकार को भी >>>>>

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