शुक्रवार, 28 मई 2010

आंकड़े तो बस दुःख बढ़ा सकते है



ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को पटरी से उतार नक्सली एक बार फिर अपनी ताकत दिखाने में लगे है कि दंतेवाडा में बस हमले के बाद वे बस नहीं करेंगे और अपना कथित विरोध जारी रखेंगे ...हादसे में मरे गए उन करीब ८४ लोगो का क्या कसूर था , क्या गलती की थी उन २५० लोगो ने जो इस घटना में घायल हो गए संख्या तो आगे और बढ़ सकती है ..पर ये बात सोचने वाली है कि बढ़ते आंकड़े तो बस दुःख बढ़ा सकते है लेकिन हमको अफ़सोस करने का हक नहीं देते क्योंकि अफ़सोस करने का हक केवल उन्हें है जो अगली बार अफ़सोस नहीं करना चाहते और इस लिहाज़ से हमारी सरकारों को तो अफ़सोस जताने का कोई हक नहीं ...नक्सली कायर है ...........दंतेवाडा बस हादसा हो या पश्चिम बंगाल के खेमासोली और सरदिया स्टेशन के बीच हुए ज्ञानेश्वरी ट्रेन हादसे की इन दोनों में मरे गए आम लोग ही थे ..कुछ बुध्दिजीवियो का कहना है है की गलती रेलवे की है जो लापरवाह है ..कुछ कहते है की गलती सरकार की है ..कुछ कहते है की नक्सली ही पूरी तरह दोषी है ..पर सच तो ये है की इतने दिनों तक नक्सली आतंक सहने के बाद हर किसी के ज़ेहन में ये तस्वीर साफ़ हो चुकी होगी की हादसे इन तीनो की ही गलतियो का नतीजा है .....नक्सलियों की बात करना तो बेमानी ही होगी इस विचारधारा को तो जैसे सांप सूंघ चूका है और ये किसी मतवाले हांथी की तरह केवल विध्वंश ही फैला रहे है ..उन घरो को रौंद रहे है जिनको बसाने के लिए संघर्ष करने का वो दावा करते है ...नक्सली कब पटरी से उतरेंगे इसका इंतजार नहीं किया जा सकता पर सरकारों को तो अ़ब जागना चाहिए ..सुरक्षा कर्मियों के साथ अ़ब तो आम आदमी भी मर रहे है ..लगता है वो दिन दूर नहीं है जब नक्सली दिल्ली जैसे शहर में जाकर भी लाल आतंक का मुजाईरा करेंगे और तब भी सरकारे कहेंगी हम हमले की निंदा करते है ये नक्सलियों की कायरता है और हमे इस घटना पर अफ़सोस है ...............................

2 टिप्‍पणियां:

  1. बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |

    बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
    अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर

    सनसनाते पेड़
    झुरझुराती टहनियां
    सरसराते पत्ते
    घने, कुंआरे जंगल,
    पेड़, वृक्ष, पत्तियां
    टहनियां सब जड़ हैं,
    सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |

    बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
    पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
    पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
    तड़तड़ाहट से बंदूकों की
    चिड़ियों की चहचहाट
    कौओं की कांव कांव,
    मुर्गों की बांग,
    शेर की पदचाप,
    बंदरों की उछलकूद
    हिरणों की कुलांचे,
    कोयल की कूह-कूह
    मौन-मौन और सब मौन है
    निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
    और अनचाहे सन्नाटे से !

    आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
    महुए से पकती, मस्त जिंदगी
    लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
    पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
    जंगल का भोलापन
    मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
    कहां है सब

    केवल बारूद की गंध,
    पेड़ पत्ती टहनियाँ
    सब बारूद के,
    बारूद से, बारूद के लिए
    भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
    भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।

    फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    बस एक बेहद खामोश धमाका,
    पेड़ों पर फलो की तरह
    लटके मानव मांस के लोथड़े
    पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
    टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
    सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
    मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
    वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
    ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
    निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
    दर्द से लिपटी मौत,
    ना दोस्त ना दुश्मन
    बस देश-सेवा की लगन।

    विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
    अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
    बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
    अपने कोयल होने पर,
    अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से

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  2. dard.....aur uska ehsaas.....hum bhi insaan hain..marne wale insaan the....ghayal log insaan hain..aur maarne wale bhi insaan...ajeeb paheli hain..kuchh samajh nhin aata....

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