रविवार, 15 अगस्त 2010

नत्था ज़रूर मरेगा


पीप्ली लाइव एक बेहद ही प्रशंसनीय फिल्म है ..आमिर खान प्रशंसा के पात्र है उनकी फिल्कारी का कोई जवाब नहीं ...वो मानवीय भावना को भली भांति समझकर उसको चलचित्र में गढ़ना बखूबी जानते है ..ये ही उनके एक श्रेष्ट कलाकार ,फ़िल्मकार और चिन्तक की छवि बनता है. फिल्म में ना केवल किसानो की व्यथा को दर्शाया गया है बल्कि मीडिया प्रशासन ,और राजनीति की भूमिका पर भी सार्थक व्यंग किये है ...फिल्म देखने के बाद मेरे बहुत से परिचितों की टिप्पणी एक सामान थी की फिल्म में पूरी तरह मीडिया को आइना दिखने का प्रयास किया गया है पर फिल्म में सिर्फ इतना ही नहीं है ...फिल्म में एक दृश्य है जिसमे नत्था रात को अपने घर के आंगन में परेशान खटिया में लेटा रहता है और तमाम मीडिया वालो की निगाहे उस और रहती है उसके घर वाले उससे जुदा घर के अंदर होते है ..तब उसकी बकरी बार बार उसके पास आकर हमेशा की तरह वाला ही बर्ताव करती है ...कुछ देर बकरी पर भड़कने के बाद वो उसे गले से लगा लेता है ...कितना मार्मिक दृश्य है ...उस जानवर ने ना तो उसके प्रति कोई सहानुभूति दिखाई ना उसको अन्य करने की कोई मंशा परेशान करने की थी , वो तो बस वैसा ही व्यव्हार कर रही थी जैसा वो हमेशा करती आई है ..ना तो उसे अपना मालिक कर्ज़ में दबा दिखाई देता है ..और
ना आत्महत्या बवाल के बाद मीडिया और राजनीति से त्रस्त नत्था और इंसानों को देखिये ना जाने क्या क्या पाल कर बैठे होते है अपने मन मस्तिष्क मै .... एक अन्य दृश्य में एक ...एक अन्य दृश्य में नत्था के हादसे में मर जाने पर उसका भाई बोलता है की हमे एक लाख मुवावजा नहीं मिलेगा क्योंकि वो आत्महत्या नहीं हादसा था और नत्था कार्ड का फायदा भी नहीं मिलेगा क्योंकि उनके पास गरीबी रेखा कार्ड नहीं है ......रुंधे गले बोलता है ..हमे ये साबित करने के लिए की हम गरीब है गरीबी रेखा कार्ड ज़रूरी है ...वाकई में देश के सिस्टम के पटरी से उतर आने की और इशारा करता है ......मुद्दे कई है पर फिल्म वर्त्तमान परिपेश्य में घट रही घटनाओ और देश की अव्यवस्थित चाल को सही करने सन्देश तो देती है .........ना केवल शासन ,सरकारों में ..बल्कि मीडिया को भी सुधार की आवश्यकता है.. फिल्म में नत्था की भूमिका निभाने वाले ओंकार दास मानिकपुरी हमारे रायपुर के पडोसी भिलाई से है छत्तीसगढ़ से है एक ऐसा रंगकर्मी जो २० साल से अपने परिवार की रोज़ी रोटी की व्यवस्था में तो लगा ही था साथ में अपने रंगकर्म को भी जिंदा रखे हुआ था ..आखिर उससे उसका फलसफा मिला ...ओंकार के ज़ज्बे को सलाम करता हू ....


बहरहाल अगर अ़ब भी सरकारे और मीडिया नहीं चेती और गरीब किसानो के हित को अनदेखा किया गया कभी राजनीती के नाम पर , कभी मनोरंजन ..यानि टीआरपी के नाम पर तो देश में अन्न पैदा करने वाला किसान फिर भूखा मरेगा आत्महत्या करेगा ...आज फिल्म का नत्था तो बच गया पर ..रियल लाइफ का नत्था गरीब किसान मरेगा .फिर से नत्था मरेगा .... नत्था ज़रूर मरेगा ...........

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