शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

कैसे एक होने की बात पर गर्व कर सकते है?

एक इन्सान कई चेहरों में जी रहा है वो बट चुका है उसे उसका असली चेहरा पता ही नहीं



काफी
लम्बे समय से जाति और धर्म के नाम पर इंसानियत को बटते देखा है ..ये बात सभी कहते है कि इंसानियत धर्म सबसे बड़ा है है पर जातिगत आधार पर अ़ब भी समूचा देश अलग अलग समाज कि अवधारणा में लिप्त है और स्वयं को एक दुसरे से पृथक बताने में गर्व महसूस करता है अलग अगल इष्ट देव की पूजा भी करता है और कभी सामाजिक सम्मलेन करके तो कभी शोभायात्रा निकल कर अपने कथित समाज की महत्ता ताकत को अन्य लोगो के समक्ष जताता है ऐसे में हम कैसे एक होने की बात पर गर्व कर सकते है ..कैसे इंडियन यूनिटी की उसकी धर्मं निरपेक्षता का बखान दुनिया के समक्ष कर सकते है ...जाती धर्मं और रंगों में भेद करने के बाद अ़ब तो भाषा के आधार पर भी भारतीयता का बटवारा हो चुका है जिससे हम पिछले कई सालो से देख रहे है ....अंग्रेजो ने धर्मं के नाम पर फूट डाली और राजनेता इसमें रंभेदिनिती भाषाभेदी नीति तो कभी छेत्रवाद का तड़का लगा कर ..एक भ्रष्ट पर पुष्ट राजनीती कर रहे है और दुःख की बात तो ये है की हमारे भाई आम लोग भी इससे समझ नहीं पा रहे और बड़े गर्व के साथ कभी जय महाराष्ट्र ,जय छत्तीसगढ़ सरीखे नारे लगाते सुने जाते है ...मैंने देखा है जब मै स्कूल के दिनों में था तब छत्तीसगढ़ नया नया अस्तित्व में आया था तब पुलिस परेड ग्राउंड में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर स्कूली छात्र छात्राओ को राजनेतिक प्रेरणा से तिरंगे के बीच में अशोक चक्र की जगह छत्तीसगढ़ के नक़्शे बने हुए हुए झंडे बाटे जाते थे शायद ये आज भी होता हो पर तरीका बड़ा कारगर था उनमे से अधिकाश बच्चे अ़ब बालिग होकर भी जय छत्तीसगढ़ का नारा लगा रहे है और छेत्रवाद के चक्रव्यूह में फस चुके है नेताओ को इन्हें झासे में लेना सरल है बनिस्बत उन लोगो के जो आज भी जय हिंद के नारे पर यकीन करते है ...जिनके मन में अपने जन्म स्थान से लगाव ज़रूर है पर वो आज भी देश के हर राज्य को अपना मानते है खुद को हिन्दुस्तानी मानते है ...कुछ एक युवा वर्ग तो अमेरिका के झंडे की टी शर्ट पहन कर , ब्रिटिश झंडे के रुमाल को सिर पर बांध कर तो कभी अंग्रेजी बोल कर शुद्ध हिंदी के शब्दों से अनजान होने के प्रस्तुतिकरण के साथ खुद को अल्ट्रा मोडर्न समझता है ॥
...खैर ये क्या घटित हो रहा है भगवान जाने क्योंकि सबके मन मस्तिषक की डोर तो उसी के हाथ में है ...इन सभी बातो से जुडी मेरी प्रथम बात जो समाजवाद की धारणा से ताल्लुकात रखती है की एक से उपनामों के लोगो के द्वारा तैयार संगठन को समाज की संज्ञा देना क्या उचित है? ..जबकि ये लोग मानसिक योग्यता ,,आचार विचार ,सहयोग करने की भावना और एक दुसरे के प्रति समर्पण भाव से जुदा हो सकते है ...वक़्त पड़ने पर एक दुसरे से मुह मोड़ सकते है..अगर आपके पड़ोस में रहने वाला कोई सज्जन या आपका कोई मित्र अगर आपके जैसा है वक़्त और हर प्रकार से आपके साथ का साथी है आपको समझता है हर मापदंड में आपके सहयोगी होने की भूमिका में खरा उतरता है पर उसका उपनाम अलग है तो वो आपका समाज क्यों नहीं है ?.........वो क्यों है जिसको आपसे कोई सरोकार नहीं जो केवल आपके लिए दुसरो से दुरिया उत्पन्न करने वाले नियम कायदे बनाकर सामाजिक प्रतिष्ठा के खो जाने का भय पैदा करता है और आपके मन को व्यथित करता है ?...किसी की बेटी को उसके लायक योग्य वर कथित समाज में ना होने पर भी ..किसी अयोग्य से केवल इस लिया बांध दिया जाता है की समाज के कुछ कायदे है समाज क्या कहेगा ...मेरा सवाल है अगर किसी का भविष्य ऐसे सामाजिक कायदों के प्रभाव में आकर तनावमय हो जाता है या बर्बाद हो जाता है तो कथित समाज उसे सुधर पायेगा या ताजिंदगी मदद को सामने आएगा? ...मैंने एक ऐसी घटना देखी है इस कारण मेरे मन में समाजवाद की प्रचलित धारणा के प्रति आक्रोश के भाव है कोई मुझे बता दे की ये समाज क्या है ???????.....फ़िलहाल आप ही देखिये इन्सान बट रहा है समाज के नाम पर,छेत्र के नाम पर ,धर्मं के नाम पर,जाति के नाम पर , रंग के नाम पर,.......१५ अगस्त भी करीब है आज़ादी के जश्न के दिन लोग अपनी एकता ..धर्मं निरपेक्षता के कसीदे पढेंगे ..एस एम एस भेजे जायेंगे .......पर अपने मन को क्या आजाद कर पाएंगे ...भीतर से आजाद हो पाएंगे ........?

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