शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

चाहत है इतनी की देश को सदा मुस्कुराता पाऊ

चाहत है इतनी की देश को सदा मुस्कुराता पाऊ
ख्वाहिश है इतनी की अपनों को अपने करीब पाऊ
ना हो कोई जात मेरे हमवतन की
मै कभी ना हिन्दू मुस्लिम के बटवारे में तोला जाऊ
राम और अल्लाह अयोध्या में नहीं हमारे दिलो में बसते है दोस्तों
तो क्यों अपने दिल के बटवारे के लिए अपनों को गैर बनाऊ
राम का चरित्र ,अल्लाह के सन्देश हमे मिलाने का
तो क्यों ज़मीन के बटवारे को लेकर कोई अफ़सोस मनाऊँ
क्यों लड़ते है यहाँ सब उसको ज़मीन दिलाने जिसकी दुनिया में वो रहते है
खुदा इस करतूत पे माफ़ भी ना करेगा कभी चाहे बाबरी के लाख बहाने बनाओ
लड़खड़ाते कदमो को सहारा दे ना पाए अगर अपनी कमजोरी के शिकार हम
तो अपनों की सिसकन को महसूस करने आंसू कहा से लाऊ
चाहत है इतनी की देश को सदा मुस्कुराता पाऊ

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