मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

ज़िन्दगी है तो चलना चाहता हू

ज़िन्दगी है तो चलना चाहता हू जहा तक जीवन की डोर ख़त्म न हो उससे थामे रखना चाहता हू

अब है हिस्सा इस दुनिया का ,तो दुनिया में रहकर कुछ पाना चाहता हू

दुःख दर्द और मुस्कराहट कभी ध्येय से भटकती है
...
..तो कभी अपनी और अपनों की ख़ुशी की वांछित सम्भावना फिर नया उत्साह जगाती है

है ज़िन्दगी तो चलना चाहता हू ..गिरा तो फिर संभालना चाहता हू

है अगर ये जीवन एक छोटी सी बोतल ..तो उस बोतल में दुनिया के सारे रंग समेटना चाहता हू

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