शनिवार, 20 नवंबर 2010

वीआईपी क्या खौफ पैदा करने के लिए होते है?

मै अपने दोस्तों के साथ फिल्म देखने गया था हैरी पौटर एंड डैडली हालो ......ये बहुप्रतीक्षित फिल्म थी इसलिए एडवांस बुकिंग करा ली ..टिकट काउन्टर से टिकट ले कर चले गए की शो के टाइम पर आयेंगे ...अब जब वापस शो के टाइम पर लौटे तो देखा टिकिट में जो टाइम लिखा था वो शो बीत चुका था..सिनेमा घर के प्रबंधक ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए हमे ..जगह दिलवाई ...मगर अंदर जाने पर टिकिट चेक करने वाले सज्जन हमसे भिड़ने लगे.. फिल्म शुरू हो चुकी थी ..बार बार की झिक झिक से तंग आकार हमने भी उन्हें कड़ी आवाज़ में कह दिया फिल्म शुरू हो चुकी है हम फिल्म देखने आये है ..तरीके से रहिये ..और अपने प्रबंधन से बात कीजिये ...हमने बार बार सीट बदलने और टिकिट चेक करवाने का धंधा नहीं कर रखा है ..चलो जाओ ..परेशान मत करो .... थोडा तीखा माहौल देख कर बगल में बैठे अन्य सज्जन ने कहा ..
शांत रहो वीआईपी सीट पर बैठे हो तुम लोग ..समझे .......हम फिल्म देखने आये थे लिहाजा मामला निपटते ही फिल्म में खो गए ..मगर अब ये सवाल उठ रहा है की क्या वीआईपी जगह में बैठने से साधारण शक्स को कोई भय से ग्रसित होकर रहना चाहिए ..दूसरी जगह सब चलता है ....वीआईपी क्या खौफ पैदा करने के लिए होते है या फिर वो कथित वीआईपी सज्जन खुद को वीआईपी और हमको धोखे से आय हुआ समझ कर अपना टशन जाता रहा था .... ?????पत्रकार होने की वजह से हमे भी ऐसे कई मौके मिलते रहते है जब हम वीआईपी होने के भाव को महसूस करे.. ..पर हमे तो कभी नहीं लगा की खौफ पैदा करना ..अनुशासन बनाने का दम्भ भरना नहीं ..ऐसा किया जाना चाहिए या ऐसा हो ..सवाल ये है की ऐसी सोच क्यों ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें