सोमवार, 27 दिसंबर 2010

.क्या होगी कभी न इंसानियत जवां

न जाने कितने युग बीते ..और अब बीत रहे ज़िन्दगी के साल
रह रह कर आता है ज़ेहन में ख्याल
पर न बदली फितरत हम लोगो की ..न कर पाए इज्ज़त ज़िन्दगी के मायनो की ..
क्या बढ़ता जायेगा यूं ही समय का कारवां ..क्या होगी कभी न इंसानियत जवां
...धीरेन्द्र गिरि ....

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