बुधवार, 29 दिसंबर 2010

क्या करू मुझे जीना नहीं आता


खुशियों को संजो कर रखना नहीं आता
मायूसी को आंसुओ से भिगोना नहीं आता
क्या करू मुझे जीना नहीं आता
मै क्या किसी को समझ पाउँगा मुझे खुद को समझना नहीं आता
इंतजार और धैर्य में अंतर समझ नहीं पाता
क्या करू मुझे जीना नहीं आता....(धीरेन्द्र गिरि)

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