मंगलवार, 11 जनवरी 2011

अगर नक्सलियों और सरकार के मध्य वार्ता होती है तो क्या गारंटी है जो नतीजा रहेगा वो राजनीति से प्रेरित न होगा?

छत्तीसगढ़ इन दिनों फिर से दुनिया भर की सुर्खियों में है ..कारण भी वही पुराना सा है नक्सलवाद ..मगर इस बार सुर्खियाँ नक्सलवाद से सम्बंधित है पूरी तरह वो नहीं ...समाजसेवी के तौर पर नाम कमा चुके डॉक्टर बिनायक सेन को रायपुर की एक अदालत ने देशद्रोही करार दिया और इस पर सारी जगहों पर देश और विदेश में भी तीखी प्रतिक्रिया हुई ..बहुतो ने विरोध दर्ज कराया तो बहुतो ने चुप्पी साधे रखना बेहतर समझा.. इससे एक बात फिर साफ हो गई की कुछ दुनिया में तथाकथित और मान्य विद्वानों के विचारो की नक़ल करना अच्छा समझते है और खुद को सफल चिन्तक मानने के भ्रम में पड़े रहते है.. तो कुछ किसी दबाव की वजह से खुद को हरा देते है और बहुमत के साथ हो लेते है भैया आखिर नेता और सरकार भी तो बहुमत का नतीजा है ..चलो जाने दो ...हम लोगो को यू ही जीने की आदत है कट जाएगी ज़िन्दगी किसी तरह .. हमारे लोग आपस में यूं ही लड़ते रहेंगे कुछ राजनैतिक रोटिया सेकते रहेंगे ,कुछ बीच में पिसते रहेंगे और बहुत से मरते कटते रहेंगे ..हमे क्या फर्क पड़ता है ..कोई हमला करे ,कितने भी मरे ,कोई जेल जाये ...
छोडो न जैसा चल रहा है चलने दो ..जनता है चार दिन में भूल जाएगी ...पर फिर भी दिल है कभी कभी कुछ कहना चाहता है सो उगल देते है आलतू फालतू बाते ..बक बक की आदत जो है ...सो बक रहे है कुछ पता है कुछ नहीं होना ..कोई पढ़ेगा भी की नहीं क्या पता ..पढ़ भी लिए तो प्रतिक्रिया में कमेन्ट नहीं करेंगे ये भी जानते है ...चलो जाने दो बात आगे बढ़ाते है ..आखिर कर नक्सल समस्या हल क्यों नहीं होती? क्यों सरकार और माओवादियो के बीच वार्ता सफल नहीं होती?...दोनों अपने अड़ंगे में है एक है की हथियार छोड़ना नहीं चाहता और दूसरा है की विश्वास जताना नहीं चाहता..एक को संदेह है की वार्ता के लिए बुला कर ठग लिया जायेगा और दूसरा तो दिन ब दिन और शांति की डगर को कठिन करते जा रहा है ...

फ़र्ज़ कीजिये अगर नक्सलियों और सरकार के मध्य वार्ता होती है तो क्या गारंटी है? जो नतीजा रहेगा वो राजनीति से प्रेरित न होगा ....कितनी प्रतिशत सच्चाई जनता के सामने आएगी ?..उस जनता के सामने जिसके हितो के नाम पर ही दोनों पक्ष लड़ रहे है ...कुछ सुझाव है जो अगर अमल में आये तो अच्छा रहेगा

1 ) नक्सलियों को वार्ता के लिए प्रस्ताव भेजा जाये ...(आमंत्रण से लेकर मुलाकात तक की पल पल की सही सही जानकारी आम जनता तक पहुंचे )

2 ) वार्ता आयोजन में दोनों दोनों पक्षों का बीमा होना चाहिए यानि सुरक्षा के लिए आश्वस्त करे कोई विश्वासघात न हो

3) सरकार नक्सलियों से सार्वजानिक मंच पर चर्चा करे

4) क्रिकेट मैच की तरह पूरी वार्ता का सीधा प्रसारण टीवी और रेडियो की ज़रिये जन जन तक पहुंचे

5 ) दोनों पक्षों की बातो (एजेंडा ) को समझ कर फैसला जनता पर छोड़ा जाये की वो किसके साथ है, कौन उनका हितैषी है..


सारी हवा हवाई बाते गुल हो जाएँगी और सही नब्ज़ पकड़ में आयेगी ..जब उनकी बात सामने आयेगी जिनके लिए ये सारे कर्म प्रभाव में है ...ये सब क्यों नहीं हो सकता जब चुनाव के लिए इतने खर्च होते है तब देशकी सबसे बड़ी समस्या के लिए आम जनता से क्यों नहीं मत लिए जाते की जनता चाहती क्या है ...

वो भी तो जाने की की जिन के लिए वो लड़ते है उनकी असलियत क्या है और वो भी जाने की जिनको रिझाने के प्रयास में वो लगे है वो कितनी होशियार है ..... हमारा की है जी हम तो ठहरे आम हसियत वाले छोटी अक्ल वाले कथित पत्रकार........ कोई जेल जायेगा तो खबर मिल जाएगी कोई हमला कर देगा तो खबर बन जाएगी अपना काम तो चलते रहेगा ..सब चलते रहेगा ..वैसे भी हम शहर में रहते है...अपनी औकात के हिसाब से ज़िन्दगी काट लेंगे सपनो को संजो भी लेंगे ...गाँव जंगल वाले जाने और सफेदपोश जाने ...जय राम जी की

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