सोमवार, 31 दिसंबर 2012

बस इन्सान बनो --

बीते साल और  नए साल  के बीच  जीवित होती इंसानी भावनाओ  और  मरती इंसानियत के  तार जोडती  पोस्ट ----  बस इन्सान बनो --- दिल्ली बलात्कार मामले के बाद जो प्रतिक्रिया देश  में देखने मिल रही है  उसमे जो बहुत अच्छा  लगता है वो है स्वस्फूर्त जनआक्रोश ,,जो इन्सानियत को न्याय दिलाने के लिए दिख रहा है .... देश भर में  भीड़  उमड़ी  वी वांट  जस्टिस  के नारों के साथ .... आमतौर पर इतनी भीड़ किसी जातिवर्ग के सांप्रदायिक  उत्सव  के दौरान  ही आम लोगो की दिखती है ...या फिर किसी जातीय ,धार्मिक , विशेष संप्रदाय ,राजनैतिक ,  सरकारी और गैर  संगठन के आयोजन में ... आत्मा की आवाज़ सुनकर तो मानो कोई कुछ करता ही नहीं ..क्योंकि दिल और दिमाग तो सदियों पुराने  चले आ रहे सामाजिक रीती रिवाजों से बंधे है ...जैसे ईश्वर ने उन्हें पृथक दिल दिमाग देकर कोई बड़ी भूल कर दी हो ....क्योंकि उन्हें अपने विवेक और दिल की बातो को स्वीकार करके  उन्हें अपनाने का या तो साहस नहीं या वो उसी ढर्रे पर जिना  चाहते है ...अपने विचारो का सम्मान करना इंसान को सीखना चाहिए ......बहरहाल दिल्ली और देश में दिख रहा जनाक्रोश  किसी भेदभाव अपने पराये की भावना से अलग है ..ये इंसान के लिए इंसानी जज्बातों को सम्मान देते नज़र आता है .... यहाँ केवल महिलाये ही महिलाओ के लिए खड़ी  नज़र नहीं आती ..बल्कि स्वस्थ् चित्त वाले पुरुष भी साथ खड़े दिखते  है ...क्योंकि इंसानियत  स्त्री पुरुष ,जाति , समाज , क्षेत्र ,भाषा  का भेद नहीं करती ...
जन आक्रोश के बाद बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने और कार्रवाई की मांग करने वाले सांसदों में से एक महिला सांसद ने कहा कि ऐसे मामलो में सुनवाई के लिए महिला वकील और महिला जज को ही अधिकार देना चाहिए ...ताकि महिला महिला के दर्द को समझ सही न्याय कर  सके ..... दरअसल यही चूक  हो रही है ...हमने  अपनी हर  व्यवस्था में महिलाओ को पुरुषो से अलग रखा है ...कभी प्रतियोगिता में  आरक्षण के नाम पर, कतारों में महिला विशेष छुट के नाम पर ... बस रेलवे में सीटो में नाम पर .   पढ़ाई के लिए भी स्कूल कालेजो में रिजर्वेशन चलता है ...... इस व्यवस्था ने महिलाओं  को  पुरुषो की तुलना में कमज़ोर करार देकर उन्हें  ही एक दुसरे से पृथक कर दिया ..... ( अगर शारीरिक असमानता के आधार पर उनको उनके अधिकार देने है तो महिलाओ के  लिए प्रतियोगिता  भी उनके बीच ही होनी चाहिए  - ताकि दोनों के बीच भेद की स्थिति न उपजे - अलग व्यवस्था सृजित की जाये ताकि  वो  वहा वो स्वतंत्र वातावरण में अपने कामकाज कर सके   )
 महिलाओ के उपर हो रही ज्यादती को लेकर भी मैंने अपने आस पास में ही कथित बुद्धिजीवियों से  सुना -- कि ऐसी घटनाओ के लिए आधुनिक पीढ़ी की लडकियों के पहनावे  ..उनकी लाईफ स्टाइल जिम्मेदार है ......मै ये सब नहीं मानता .... क्यों लोग सब कुछ उन्ही पर थोप देते है ... भाइयो जहा तक सेक्स की उत्कंठा का सवाल है ... मेरे ख्याल से इश्वर ने स्त्री पुरुष दोनों में  ही सामान रूप से इसके प्रति आकर्षण रखा है ...जबकि उल्लेख तो यह भी होता है कि  पुरुषो की तुलना में स्त्रियों में ज्यादा उत्तेजना होती है ..... ...अब यहाँ ये बात समझना चाहिए जब  कम कपड़ो में दुनिया भर में घूम रहे पुरुषो को देखकर भी स्त्रियाँ अपने आपे से बाहर नहीं होती तो फिर  पुरुष वर्ग ही ऐसा क्यों करता है ?.... दरअसल इसके लिए भी सामाजिक भेदभाव ही जिम्मेदार है ... पुरुषो को आज़ाद माना गया है ...वो करे भी तो सब माफ़  है  मगर स्त्रियों को एक गलती भी माफ़ नहीं ...यही वजह है कि सदियों से स्त्रियाँ खुद को नियंत्रित करती आ रही है ....यही तो आज देश चाहता है कि ज़बरदस्ती करने वालो के मन में इतना  भय कड़ी प्रतिबद्धता से भरा जाये कि वो खुद को खुल्ला सांड न समझे ....
संस्कृति का नाम लेकर आज भी विवाह के बाद महिलाओ के लिए ड्रेस कोड के तौर  पर परिधान फिक्स कर  दिया जाता है ...जबकि पुरुष वही लिबास पहनना जारी रखते  है ....  यानि यहाँ भी आजादी किसी एक को दी गई ...... सृष्टि का सिद्धांत है जो ज्यादा शक्तिशाली है जिसे ज्यादा आजादी है वो कमज़ोर पर हमेशा हावी होगा ही ..........  ..........  

....विचारो में आवश्यक खुलापन लाना ज़रूरी है ....इसपर राजनीती नहीं होना चाहिए ...... नेताओ और राजनीती को लोग बुरा कहते  है .... पर इस बात को नहीं समझते राजनीती का जो स्वरुप उन्हें पसंद नहीं उसे उन्होंने ही  बलशाली बनाया है ... जाति ,समाज ,  धर्म ,  भाषा , क्षेत्र   इस सभी के ताने बाने में  लोग इतना उलझे है कि  उन्हें  खुद इंसान कम और  अलग अलग नस्ल के ज्यादा नज़र आते है ... जो उनके बीच का है बस वही उनका चहेता है .. फिर क्यों नहीं होगी इस पर राजनीती ?? ... एक हो जाओ  फिर न राज ठाकरे होगा ...ना मायावती ना ..भाजपा ना कांग्रेस .न फलाना फलाना धार्मिक संस्थाये जो राजनेताओ को पोषित करती है ...... पुरे देश में सब इंसान बनो ...फिर न्याय - व्यवस्था - राजनीती - प्रशासन सब इसी के आधार पर अपनी दिशा में बढ़ेंगे .... यहाँ तो हिन्दू और मुसलमान के लिए भी अलग अलग कानून बना दिए गए है ...जातियों में भेद करके  उन्हें व्यवस्था भी   एक दुसरे से अलग कर रही है .... यानि  बात केवल इतनी है ...जहा  केवल एक सामान अधिकार और हैसियत के लोग होंगे वहा  दानव  भी छुप नहीं सकेंगे  वो साफ़ साफ़  नज़र आ जायेंगे ...असमानता को  भेदभाव   या अधिकार कम करके  नहीं मिटाया जा सकता .... समानता केवल समानता को ताकतवार बनाने से आती है ....

--महिलाओ सहित सभी अलग अलग हो चुके समुदायों  को एक सी आजादी देनी होगी --- राजनीती पर अफ़सोस जताने वालो को इसकी मौजूदा स्थिति के कारणों को समझना होगा ....कमज़ोर लोगो को आरक्षण देकर अलग अलग इंसानी समाज न बनाकर  उन्हें उस आर्थिक मदद देकर सरकार और व्यवस्था को मजबूत बना कर एक सामान प्रतियोगिता में खड़ा करना होगा  -- महिलाओ को नैतिकता और संस्कृति की बेडियो से आज़ाद करना होगा ..अगर नहीं कर सकते तो यहाँ भी समानता का सिद्धांत लागू करना पड़ेगा यानि पुरुषो की भी उतनी ही आजादी कम हो ...... हर इंसान चाहे वो स्त्री हो या पुरुष  उसे पहले इंसान समझा जाए ---

ये वो कुछ बिंदु है जो  देश में बढ़ रहे अपराधो ..मरती इंसानियत ,  भ्रष्ट राजनीती की वजह है ... अनेक संस्कृति फिर भी एक ..इन क्रिटीबल इण्डिया --- ये सब बाते फालतू कि  हो चुकी है -- फूट डालो राज़ करो कि नीति को मजबूत करने के लिए हमारे देश में बहुत कुछ है ...तभी यहाँ कभी कोई समुदाय शीर्ष पर होता है ..स्त्री की हालत दयनीय है .... स्वार्थ  से भरी इंसानी महत्वकांक्षाए अलग अलग विचारधारा को ताकातवर बना देती है ...और फिर बाहर  दूसरे देश से आये लोग हम पर प्रभाव जमा लेते है ... क्योंकि वो नैतिक तौर पर  हमसे ज्यादा आज़ाद है   ......

अंत में यही बात कहना  है कि  अगर कही सकारात्मक ..इंसानियत से ओत प्रोत   उर्जा  के कोपल फूट  रहे है तो ये इस बात के संकेत है कि  अब सृष्टि भी उसी स्वरुप में अपनी रचना को देखना चाहती है ..जैसा  उसने उसे बनाया था .... यानि केवल इंसान ..इंसान के रूप में  आज़ाद हवा में समानता से साँस ले .... दिल्ली के दरिंदो को तो मौत के हवाले  करना ही चाहिए ..ऐसा करके इंसानी समाज में रहने वाले दानवो उनकी सीमा दिखानी चाहिए ....वो लड़की तो चली गई मगर देश में  इंसानों  को जगा गई ... उसे श्रद्धांजलि ...   उम्मीद करते है उसकी मौत व्यर्थ नहीं जाएगी .... कुछ तो बदलाव आएगा ....नए साल में सबको इंसानियत और खुशिया नसीब हो -- बस इंसान बनो ..भगवान् हम  सभी को आत्मिक शांति से परिपूर्ण  आशीर्वाद दे   welcome 2013 -          Dhirendra 

1 टिप्पणी:

  1. तुम्हारी सोच आज की सोच है इस नए जमाने की सोच है..........महिलाओ के कम कपड़ो के मैं भी खिलाफ हूं ....और पश्चिमी आजादी का............लेकिन समय लगातार बदल रहा है...............हम नही बदले तो वक्त हमे बदल देगा अभी दो घंटे पहले मैं कलकत्ता ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस से लौट रहा था।तड़के सुबह नींद खुली तो देखा जो कालेज स्टुडेंट आपस में चिपक कर बैठे हैं.और शायद एक कंबल में ही घूसकर गरमाहट पैदा करना चाह रहे है........थोड़े देर के लिए लगा इसलिए गैंगरेप होता है बातचीत में दोनो सभ्य और सुशील नजर आए........फिर मुझे लगा गैंगरेप जैसे घटनाओं के बाद भी यह पीढ़ि नहीं सुधारा लगता है। इन्हें लगता है ये इनका अधिकार है (खुलेआम चिपने लिपटने का).......फिर मुझे लगा परिवर्तन तो तय है हमे बदलना होगा..............ये आजादी तो आज की युवा की है.........जिसे उन्हें हर हाल में देना होगा............
    जो हमे बुरा लग रहा है उसे अच्छा समझना होगा............इसलिए मैने भी अपना विचार बदल लिया है और वो सभी अपना विचार बदल ले वक्त बदल रहा है.....उसे बदलने दो पहली बार धोती से जब कोई फुलपेंट में और साड़ी से सलवार कुर्ते में गया था तब भी लोगो को बुरा लगा होगा........

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